क्या तीर्थ स्थल पर साधना करने से लाभ अधिक होता है ?




यह एक बड़ी पुरानी समस्या है कि लोगों को लगता है कि वे जहां हैं, वह जगह उतनी अच्छी नहीं है, कोई दूसरी जगह उन्हें बेहतर लगती है।

मैं यह नहीं कह रहा कि कुछ खास तरह के कामों के लिए कुछ जगहें सहायक नहीं होती हैं – बिल्कुल ऐसी जगहें हैं – लेकिन आध्यात्मिक प्रक्रिया अंदरूनी यात्रा है। चाहे आप न्यू यॉर्क में हों या हिमालय में, दोनों जगह आप तो वैसे ही रहेंगे। जब आप पहाड़ों पर जाते हैं, तो पहले तीन दिन तो आपको लगता है कि आप भी थोड़े असाधारण हो गए हैं, लेकिन तीन दिन बाद ही ये भाव खत्म हो जाते हैं। फिर वही समस्याएं आएंगी। कभी आप अचानक पहाड़ों के पास जाकर बैठते हैं और सोचते हैं, यहां कितनी शांति महसूस हो रही है। लेकिन आप जाकर पहाड़ों पर रहना शुरू कर दीजिए, फिर देखिए। शहरों में रहने के मुकाबले आपको वहां ज्यादा समस्याओं का सामना करना होगा।

यात्रा को आध्यात्मिक प्रक्रिया से मत जोड़िए

हमने शहरों का निर्माण इसलिए किया, ताकि हर चीज व्यवस्थित हो, हर चीज आसानी से उपलब्ध हो। शहरों का निर्माण हमने समस्या पैदा करने के लिए नहीं किया, जीवन को आसान और व्यवस्थित बनाने के लिए हमने शहर बनाए।
अगर हम सभी अपनी ऊर्जा को एक ही जगह लगा दें, तो किसी पहाड़ की गुफा के मुकाबले कहीं ज्यादा आराम और सुविधा हमारे पास होगी। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि ऐसी जगहें नहीं हैं, जो आपको प्रेरित कर सकती हैं। बिल्कुल हैं ऐसी जगहें, लेकिन अगर आप पहले से प्रेरित हैं, तो जो भी जगह आपके लिए सबसे ज्यादा सुविधाजनक हो, आपको वहीं साधना करनी चाहिए क्योंकि इसका मकसद अंदर की ओर मुडऩा है, किसी यात्रा पर जाना नहीं। आप दुनिया की यात्रा करना चाहते हैं, आपको घूमने का शौक है, आप दुनिया देखना चाहते हैं? जरूर देखिए, लेकिन उसे अलग से कीजिए, उसे आध्यात्मिक प्रक्रिया के साथ मत जोड़िए। आप किसी नई जगह आंखें बंदकर के मत बैठिए। यह अपराध है। आप ताजमहल जाएं और वहां आंखें बंद करके ध्यान करने की कोशिश करने लगें तो यह अपराध होगा। बहुत सारे लोग ऐसा करते हैं। वे ताजमहल के सामने बैठकर ध्यान करते हैं। नहीं, आपको आंखें खोलकर ताजमहल की कलात्मकता और बनावट का आनंद लेना चाहिए। लोग आर्ट म्यूजियम जाकर भी ऐसा ही करते हैं। ऐसा मत कीजिए।

सिर्फ जीवंत रहना बहुत विशाल घटना है

आप अपनी आंखें बंद करते हैं, क्योंकि आप इस दुनिया से कोई मतलब नहीं रखना चाहते। आंखें बंद करने के पीछे यही वजह तो है।

जब मैं आंखें बंद कर लेता हूं, तो इसका मतलब है कि दुनिया से मुझे कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन दुर्भाग्य से ज्यादातर लोग जब आंखें बंद कर लेते हैं, तो दुनिया और बड़े स्तर पर आकर उनके साथ जुड़ जाती है। जब आप इस बात में साफ फर्क कर सकें कि भीतर क्या है और बाहर क्या – तो एक आनंद की अनुभूति होती है, जिसे आपको जरुर महसूस करना चाहिए। अगर मैं अपनी आंखें बंद कर लूं तो दुनिया मेरे लिए पूरी तरह खत्म हो जाती है। अगर मैं कुछ दिनों के लिए खुद को दुनियावी बातों से हटा लूं, पांच, छह दिन अगर मैं सिर्फ अपने साथ रहूं तो मेरे दिमाग में एक भी विचार नहीं आएगा। मैं पढ़ता नहीं हूं, टीवी भी नहीं देखता। मैं कुछ नहीं करता, क्योंकि सिर्फ जीवंत रहना उन सारी फ़ालतू चीजों से कहीं बड़ी घटना है जो हम और आप कर सकते हैं।
: Aanand Sadhna Kendra 




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